पिछले दिनों मैंने कृष्णा सोबती की प्रसिद्ध लम्बी कहानी ‘ऐ लड़की’ अपनी हिंदी कक्षा में पढ़ी | मुझे कहानी और उपन्यास पढ़ना पसंद है, पर मुझे सबसे ज्यादा संस्मरण पढ़ना अच्छा लगता है क्योंकि उसमें जीवनदर्शन शामिल होता है और सामान्य जीवन की झलक होती है| मुझे दूसरे देशों की जीवन शैली और संस्कृति बहुत दिलचस्प लगती है|हमारी संस्कृति तथा दूसरे देशों की संस्कृति की समानताएं तथा विषमताएं को देखना और समझना मेरे लिए बहुत रोमांचक होता है|मुझे लगता है ‘ऐ लड़की’ बताती है कि हम बहुत सी बातें अपने मन में तब तक छुपाये रखते हैं जब तक हमारा अंत समय निकट नहीं आ जाता | ये बातें संस्कृति नहीं मानव मन से जुड़ी हैं| कहानी की शुरुआत एक कमरे से होती है, जहाँ एक लड़की अपनी बीमार माँ (अम्मी जी) के साथ है| शुरू-शुरू में वे हल्की- फुल्की बातचीत करते हैं| अम्मी जी अपनी बेटी को अपनी युवावस्था, शादी और अपने ससुराल के बारे में बताती हैं| बीच-बीच में बेटी उनसे कुछ सवाल पूछती जाती है|अम्मी जी किसी असाध्य बीमारी से पीड़ित है| वो उठने-बैठने में सक्षम नहीं इसलिए उनके घर एक कामवाली महिला सूसन है, जो अम्मी जी की सेवा-चाकरी के लिए है| अम्मी जी को कोई तकलीफ होने पर डॉक्टर साहिबा भी आती-जाती रहती हैं| कहानी जैसे-जैसे आगे बढ़ती है वैसे ही अम्मी जी की बातों में भी परिवर्तन आने लगता है| कभी अम्मी जी अपने घर के बारे में बताती है तो कभी किसी काम को न कर पाने के लिए अफ़सोस जाहिर हैं| अम्मी जी अपने बेटे, नाती और पोतों को भी याद करती है| कभी लड़की बहुत मासूमियत से कुछ बोलती या पूछती है तो अम्मी जी अचानक भड़क जाती है| अधिकतर वृद्धावस्था में लोग कुछ चिड़चिड़े से हो जाते हैं | कहानी पढ़ते हुए मुझे अपने नाना जी की याद आ गई| जब भी मैं अपने नाना जी के घर के अन्दर खेलते खेलते भागता था वो अचानक बहुत गुस्सा होते थे और जोर से चिल्लाते थे |लड़की पर कभी अम्मी जी के व्यवहार से गुस्सा नहीं होती| आत्मीय रिश्तों में ऐसा होता रहता है| इस कहानी में अम्मी जी और लड़की जानती है कि उनका साथ कुछ ही दिनों का है इसलिए अम्मी जी अपने मन को अपनी बेटी के सामने खोल कर रख देती है| अम्मी जी लड़की को अपना जीवन अपने हिसाब से जीने को कहती है| कहानी में लड़की की स्थिति मुझे उतनी स्पष्ट नहीं हो सकी | शायद ऐसा जानबूझकर किया गया था ताकि हर लड़की अपने आपको उस लड़की से जोड़ सके | कुछ महिलाएं अपने आपको अम्मी जी से भी जोड़ सकती हैं | मैं भी अम्मी जी में अपनी माँ की हल्की सी छवि को देखता हूँ|कहानी का वो भाग मुझे सबसे ज्यादा पसंद आया जब अम्मी जी लड़की के कमरे में आती हैं| दोनों सिगरेट पीती हैं| उस समय ऐसा लगा मानों दो अलग अलग पीढ़ियों के बीच की दीवार टूट गई है| उस समय वे दोनों सिर्फ दो महिलाएं थी | कुछ देर के लिए उनके बीच का रिश्ता, संस्कृति, मान्यताएं और मर्यादाएं सब कुछ गुम हो चुका था | अक्सर ऐसी बातें हम पश्चिमी फिल्मों में देखते हैं| व्यक्ति के जीवन में कई बार ऐसा होता है, पर मैं सोचता हूँ, ऐसा अंत समय में ही क्यों होता है? इस कहानी से मुझे पता चला कि महिलाओं का जीवन कितना अलग होता है| जब मैं युवा था मैं किसी महिला के उतना करीब नहीं था कि उनके जीवन और उनकी भावनाओं के बारे में सही-सही जान सकूँ, पर जैसे-जैसे मैं बड़ा होता गया मैं महिलाओं की भावनाओं को थोड़ा-थोड़ा समझने लगा था |कहानी पढ़ते समय मेरे दिमाग में एक प्रश्न उभर रहा था कि किसी माता और पुत्री के बीच ऐसी बातचीत क्या सामान्य है? क्या सभी माँ-बेटी ऐसी ही बातें करती हैं? यदि ऐसा होता है तो यह बड़ी बात है क्योंकि इससे पता चलता है कि कितनी सारी महिलाएं अपने जीवन से असंतुष्ट है? हमारे देश में भी महिलाएं जीवन के कुछ महत्वपूर्ण नियमों को अपनी बेटियों को सिखाती है | इस कहानी में माँ अपनी बेटी से कहती है कि अपने आपके लिए जियों | अधिकतर संस्कृतियों में सिखाया जाता है कि महिलाएं पुरुषों के लिए क्या-क्या कर सकती है पर इस कहानी में अम्मी जी अपनी बेटी को सिखाती है कि “वो अपने आपके लिए क्या-क्या कर सकती है और कैसे खुश रह सकती है|”मुझे लगता है कि अम्मी जी को अपने जीवन में कई काम नहीं कर पाने का अफ़सोस है| अम्मी जी जानती है कि उनकी बेटी अपने जीवन में बहुत कुछ चुन सकती है | कभी-कभी हमारे मम्मी-पापा अपनी आशाएं हमारे सामने स्पष्ट नहीं करते इसलिए बच्चे अपने मन में कई नाकारात्मक कल्पनाएँ कर लेते हैं, पर अम्मी जी अपनी बेटी को स्पष्ट रूप से अपनी बात कहती है|मैं सोचता हूँ कि कैसे मैं अम्मी जी की तरह अपने बेटे को अच्छी सोच दे सकता हूँ| कहानी पढ़ते समय मैं महिलाओं की स्थिति के बारे में सोच रहा था | मुझे अहसास हुआ कि मम्मी पापा की सीख बच्चों के लिए बहुत महत्त्व रखती है| अम्मी जी जब बार-बार बाहर के मौसम के बारे में पूछती है, तब मुझे पता नहीं क्यों बहुत सुखद अनुभूति होती थी, जैसे वो अपने जीवन को थाम रही थीं, पर सच तो ये था कि दिन पर दिन अम्मी जी की स्थिति खराब होती जा रही थी|

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