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रायगढ़ में शैलचित्रों पर आयोजित हुई त्रिदिवसीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण शिविर

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Feb 7, 2024

समापन समारोह में शामिल हुए कलेक्टर श्री कार्तिकेया गोयल

देश के 12 राज्यों के 65 से अधिक महाविद्यालयीन छात्रों, विशेषज्ञों, व्याख्याताओं की रही हिस्सेदारी

रायगढ़, 7 फरवरी 2024/ कलेक्टर श्री कार्तिकेया गोयल के मुख्य आतिथ्य में रायगढ़ के शैलचित्रों की त्रिदिवसीय कार्यशाला एवं प्रशिक्षण शिविर का गरिमामय समापन, मारवाड़ी पंचायती धर्मशाला में संपन्न हुआ। कलेक्टर श्री गोयल ने रायगढ़ के शैलचित्रों की इस कार्यशाला एवं प्रशिक्षण शिविर को महत्वपूर्ण बताया और पूरे टीम को बधाई एवं शुभकामनाएं दीं। उन्होंने पुरातत्विक जानकारियों के प्रचार-प्रसार और इसके संवर्धन में हमेशा अपने सहयोग की बात कही। इस अवसर पर संयुक्त कलेक्टर ऋषा ठाकुर, डिप्टी कलेक्टर रीतु हेमनानी, गोपाल अग्रवाल, विनोद अग्रवाल, मनोज श्रीवास्तव, नरेश अग्रवाल, प्रशिक्षण शिविर की पूरी टीम के साथ गणमान्य नागरिक उपस्थित रहे।
उल्लेखनीय है कि भारतीय पुरातत्व का इतिहास काफी प्राचीन रहा है। पुरातत्व के क्षेत्र में शैलचित्रों का प्रमुख स्थान है। ऊंचे पहाड़ों पर मिलने वाले प्राचीन शैलचित्र भारतीय प्रागैतिहासिक काल के अमिट छाप है। यह धरोहर मानव के आदिम हस्ताक्षर है जो आज भी भारत के विभिन्न क्षेत्रों से पाए जाते हैं। शैलचित्र कला की दृष्टि से छत्तीसगढ़ राज्य भी काफी समृद्ध है। छतीसगढ़ में चितवा डोंगरी, ओंगना, कबरा पहाड़, उषाकोठी आदि जैसे शैलाश्रय प्राप्त हुए है जिनसे प्रागैतिहसिक काल की जानकारी प्राप्त होती है। किन्तु छत्तीसगढ़ के इस प्रकार के धरोहरों के बारे में यहां के स्थानीय तथा इस क्षेत्र से बाहर के लोगों में जानकारी कम है और इसी उद्देश्य की पूर्ति हेतु प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला, पं. रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ और भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान भिलाई छत्तीसगढ़ के संयुक्त तत्वाधान में ‘शैलीचित्र कला का उद्भव, विकास और नृ-पुरातत्वीय अध्ययनÓ विषय पर सप्त दिवसीय राष्ट्रीय कार्यशाला का आयोजन किया गया है।
कार्यशाला भारतीय इतिहास अनुसंधान परिषद नई दिल्ली, संस्कृति विभाग छत्तीसगढ़ शासन तथा डिपार्टमेंट ऑफ साइंस एन्ड टेक्नोलॉजी के द्वारा प्रायोजित है। इस कार्यशाला का शुभारम्भ आईआईटी भिलाई मे 02 फरवरी को हुआ। जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में श्री अजय चंद्राकर विधायक एवं पूर्व मंत्री छत्तीसगढ़ शासन तथा विशेष अतिथि के रुप में श्री अनबलगन पी. सचिव, संस्कृति विभाग, छत्तीसगढ़ शासन तथा प्रोफेसर सच्चिदानंद शुक्ल माननीय कुलपति पंडित रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर, छत्तीसगढ़ की उपस्थिति में सम्पन्न हुआ। इस उद्घाटन सत्र के अध्यक्ष प्रोफेसर राजीव प्रकाश निदेशक, आईआईटी भिलाई तथा संयोजक डॉ.नितेश कुमार मिश्र, वरिष्ठ सहायक प्राध्यापक प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला, पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय, रायपुर छत्तीसगढ़ है।
कार्यशाला में भारत के विभिन्न राज्यों जैसे महाराष्ट्र, उड़ीसा, उत्तर प्रदेश, बिहार छत्तीसगढ़, पश्चिम बंगाल, कर्नाटक, केरल, उत्तराखंड, राजस्थान, दिल्ली, श्रीलंका आदि से लगभग 63 प्रतिभागियों ने भाग लिया है। कार्यशाला के प्रथम दो दिन के व्याख्यान आईआईटी भिलाई में हुए। इसके बाद के तीन दिन शैलचित्रों के अध्ययन हेतु प्रतिभागियों को रायगढ़ जिले लाया गया जहां वे कबरापहाड़ और उषाकोठी नामक पुरास्थल पर शैलचित्रों से संबंधित जानकारी और प्रशिक्षण प्राप्त करेंगे। सभी प्रतिभागी और एक्सपर्ट आईआईटी भिलाई से ट्रेन के माध्यम से रायगढ़ पहुंचे। तत्पश्चात दो व्याख्यान हुए। प्रथम व्याख्यान डॉ. अर्कीत प्रधान ;सुपरीटेंडेंट आर्कियोलॉजिस्ट, एएसआई चंडीगढ़ सर्कल का था।
इन्होनें प्रतिभागियों को किसी पुरास्थल पर शैल चित्रकला के अध्ययन में किन बातों का विशेष ध्यान रखना चाहिए, इस विषय पर चर्चा की। दूसरा व्याख्यान डॉ.विनय कुमार असिस्टेंट प्रोफेसर बी.एच. यू.वाराणसी ने नृ-पुरातत्त्वीय अध्ययन विषय पर दिया। जिसमें इन्होने शैल चित्रकला को जनजातियों से सम्बद्ध करने का प्रयास किया। 5 फरवरी को प्रतिभागियों को काबरा पहाड़ नामक पुरास्थल ले जाया गया। जहाँ उन्हें फील्ड ट्रेनिंग दी गई। यहा एक्सपर्ट के रूप में डॉ एसबी ओटा सेवानिवृत एडीजी, एएसआई, पुराविद निहारिका श्रीवास्तव और सुमन पाण्डेय ने शैल कला के तकनीकी पक्ष जैसे जीपीएस, जीआईएस, टोपोसीट एवं डीसटो मेटर का प्रयोग कैसे किया जाए इसका प्रशिक्षण दिया। साथ ही वरिष्ठ पुरातत्वविद प्रो.आरपी पाण्डेय भूतपूर्व विभागाध्यक्ष, प्राचीन भारतीय इतिहास संस्कृति एवं पुरातत्व अध्ययन शाला, जीवाजी यूनिवर्सिटी ग्वालियर भी मौजूद थे। विषय-विशेषज्ञों ने प्रतिभागियों को यहां के शैलीचित्रों से परिचित करवाया। शैलीचित्रों के रंग, अंकन यहा शैल चित्र बनाने के कारण, उद्देश्य आदि विषयों पर उन्होंने विस्तृत चर्चा की। शैलाश्रयों के माप लेना, उन्हें किसी काल विशेष से संबंधित करना, उनके विभिन्न विषय वस्तुओं का अध्ययन करना भी सिखाया गया। इस फील्ड ट्रेनिंग हेतु रायगढ़ नगर के गणमान्य नागरिक मनोज श्रीवास्तव, विनोद अग्रवाल, डॉ.आनंद मूर्ति, गोपाल अग्रवाल, नरेंद्र नेताम, पर्यटन विभाग से श्रीमती आभिका तिवारी, भानु मिश्र, सूरज पेटल सरपंच पंचायत लोइंग और दाताराम पटेल का विशेष सहयोग भी प्राप्त हुआ। रायगढ़ में तृतीय दिवस को उषाकोठी नामक एक अन्य पुरास्थल ले जाया गया वहाँ भी शैल कला का प्रशिक्षण दिया गया। कार्यक्रम का सफल संचालन डा.नितेश कुमार मिश्र ने किया। कार्यशाला के अंतिम दो दिन का व्याख्यान और समापन समारोह पं.रविशंकर शुक्ल विश्वविद्यालय रायपुर छत्तीसगढ़ में संपन्न होंगे।

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